सिरसा, 5 जून : सिरसा नरेश के नाम से प्रसिद्ध रहे लछमन दास अरोड़ा सिरसा की राजनीति के प्रमुख किरदारों में से रहे हैं। आज उनकी पुण्यतिथि है। अरोड़ा सिरसा विधानसभा सीट से 5 बार विधायक निर्वाचित हुए। 3 बार मंत्री रहे। राजनीति में वे करीब साढ़े चार दशक तक सक्रिय रहे और साल 1967 में पहली बार भारतीय जनसंघ की टिकट पर वे सिरसा सीट से विधायक चुने गए थे। आज उनकी राजनीतिक विरासत को उनके नाती गोकुल सेतिया आगे बढ़ा रहे हैं। गोकुल वर्तमान में सिरसा से विधायक हैं। खास पहलू यह है कि गोकुल ने बहुत कम समय में एक लोकप्रिय युवा नेता के रूप में पहचान बनाई है। इसी तरह से अपने राजनीतिक विरोधियों के बीच भी गोकुल सेतिया के नाना लछमन दास अरोड़ा लोकप्रिय थे। अपनी कार्यशैली के चलते उन्होंने अपने समर्थकों के बीच एक खास तरह की पहचान बनाई थी। लछमन दास अरोड़ा का जन्म 13 अक्तूबर 1932 को पंजाब के मानसा जिला के गांव संघा में हुआ। उन्होंने सिरसा से दसवीं की और इसके बाद सिरसा को ही अपनी सियासी कर्मभूमि बना लिया।
कबड्डी के अलावा खेलों से उन्हें खासा लगाव रहा। वे रिकॉर्ड 5 बार 1967, 1982, 1991, 2000 और 2005 में सिरसा से विधायक निर्वाचित हुए। तीन बार वे मंत्री रहे। सिरसा नरेश के नाम से मशहूर लछमन दास अरोड़ा एक तरह से वंचितों, गरीबों व दलितों की दमदार आवाज थे। एक राजनेता के रूप में उनकी काम करने की अपनी एक अनूठी शैली थी। विशेष पहलू यह है कि उनके घर जाने वाला शख्स खाली नहीं लौटता था। वे किसी को बिना चाय पिलाए और मिठाई खाए बिना घर से नहीं जाने देते थे। उनके घर के दरवाजे हर समय खुले रहते थे। उन्होंने नेहरु पार्क में बनी दुकानों का मालिकाना हक वहां के छोटे दुकानदारों को दिलवाया। सिरसा में ऑटो मार्कीट का सपना उन्होंने साकार किया। उनकी कार्यशैली और उनकी ओर से किए गए कार्यों को आज भी लोग याद करते हैं। खास बात यह है कि अपनी खास शैली, सौम्य और साधारण व्यवहार के चलते वे अपने विरोधियों के बीच भी काफी लोकप्रिय थे। सिरसा जिला चौधरी देवीलाल का गृह इलाका रहा है।
इसके बावजूद पहले चौधरी देवीलाल और बाद में ओमप्रकाश चौटाला के साथ उनके संबंध बेहद मधुर रहे। चौटाला परिवार ने कभी भी अरोड़ा पर किसी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी कभी नहीं की। साल 1966 में हरियाणा क गठन हुआ और 1967 में पहले विधानसभा चुनाव हुए। भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार लछमन दास अरोड़ा को 18,805 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के सीताराम को 13,738 मत मिले। इस तरह से अरोड़ा 5,067 वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए। साल 1982 के विधानसभा चुनाव में अरोड़ा ने आजाद उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक दी। अरोड़ा ने 18,458 वोट लेते हुए भाजपा के महावीर प्रसाद रातुसरिया को करीब 1780 वोटों के अंतर से हराया और वे दूसरी बार मंत्री बने। 1982 में अरोड़ा भजनलाल की सरकार में मंत्री भी रहे। इसके बाद उन्हें 1987 के चुनाव में लोकदल के हजार चंद कम्बोज से हार का सामना करना पड़ा। सिरसा नरेश ने साल 1991 के चुनाव में फिर से वापसी की। इस बार उन्हें कांग्रेस ने टिकट दे दी। अरोड़ा को 33102 वोट मिले जबकि भाजपा के गणेाीलाल 14107 वोट ही मिले। इस तरह से अरोड़ा ने 18,995 वोटों के अंतर से हराया। तीसरी बार विधायक बने अरोड़ा भजनलाल सरकार में उद्योग मंत्री बनाए गए। साल 2000 में अरोड़ा ने करीब 40,522 वोट लेते हुए भाजपा के जगदीश चोपड़ा को 25,431 वोटों के अंतर से हराया जबकि साल 2005 के चुनाव में उन्होंने 60,597 वोट लेते हुए इनैलो के पदम जैन को करीब 15 हजार वोटों से शिकस्त दी।
कैप्शन नंबर5एस.ए.एस.600
लछमन दास अरोड़ा।