लोकसभा में गूंजा थेहड़ का मुद्दा

सिरसा- सिरसा शहर के दस हजार परिवारों के अधिकारों से जुड़ा थेहड़ का मुद्दा आज संसद में गूंजा। लोकसभा सत्र की कार्रवाई के दौरान सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने थेहड़ के मुद्दे पर आवाज उठाई। इस संदर्भ में केंद्रीय पर्यटन और कला संस्कृति ...

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सिरसा- सिरसा शहर के दस हजार परिवारों के अधिकारों से जुड़ा थेहड़ का मुद्दा आज संसद में गूंजा। लोकसभा सत्र की कार्रवाई के दौरान सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने थेहड़ के मुद्दे पर आवाज उठाई। इस संदर्भ में केंद्रीय पर्यटन और कला संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह ने जवाब दिया, जिस पर सैलजा ने आपात्ति जताई।
कहते हैं कोई बस्ती बसते-बसते बसती है। थेहड़ भी ऐसे बसता चला गया। प्रशासनिक अधिकारियों की आंखों पर पट्टी बंधी रही। राजनेताओं को वोट बैंक का डर सताता रहा। ऐसे में जब भी थेहड़ पर किसी ने झोंपड़ी बना ली, किसी ने कच्चा मकान तो किसी ने पक्का मकान बना लिया। बिजली कनैक्शन लेने गए तो मिल गया। पानी का कनैक्शन भी मिल गया। यहां पर सरकारी स्कूल भी खुल गया। सांसद निधि कोष से पानी के ट्यूबवैल भी लग गए। कोठियां भी बन गई और कारोबार भी चल पड़ा। सब था तो धार्मिक स्थल क्यों न बनते? पीर की दरगार, मंदिर, गुरुघर सब बन गया। अपने तमाम जीवन की जमा पूंजी लोगों ने यहां अपने रहने के लिए बनाए गए मकान और कारोबार पर लगा दी। पर अब एकाएक इन परिवारों के यहां से पलायन का संकट आन खड़ा हुआ है। 10 हजार परिवारों के पुनर्वास की कोई नीति नहीं है।
यह है थेहड़ का अतीत
दरअसल कभी अतीत में लोहे के दुर्ग के रूप में अस्तित्व में रहा थेहड़ पर सिरसा शहर की एक बड़ी आबादी रहती है। यहां 21, 22, 23 और 24 नम्बर वार्ड हैं। 88 एकड़ में करीब 10 हजार मकान बने हुए हैं। यह मकान यूं ही नहीं बनें। न तो कभी नगरपरिषद प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया। जो भी आला अधिकारी यहां आया, इस ओर ख्याल ही नहीं किया। 20वीं सदी के शुरूआत से यहां मकान बनाए जाने लगे। लोग थेहड़ के मिट्टी के टीलों को काटकर यहां अपने आशियाने बनाने लगे। किसी भी अधिकारी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। किसी भी विभाग का समन्वय नहीं दिखा। यही वजह रही कि बिजली निगम ने यहां बिजली के खंभे लगा दिए। घरों में कनैक्शन दे दिए। जलदाय महकमा भी क्यों पीछे रहता।
कभी लोहे का किला था थेहड़
थेहड़ का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। इतिहासवेताओं के अनुसार महाभारत के सभापर्व श्लोक में शैरिष्क नगर के नाम से सिरसा का जिक्र मिलता है। प्रचलित जनश्रुति के अनुसार हजारों साल पहले अपने वनवास काल के समय 5 पांडवों में से नकूल व सहदेव ने यहां वनवास काटा। 1173 में राजा सारस के वशंज पालवंशीय राजा कुंवरपाल सरस्वती नगर पर राज करते थे। हजारों वर्ष पहले इस क्षेत्र में जंगल ही जंगल थे और इसे कुरु प्रदेश के नाम से जाना जाता था। बताते हैं कि राजा कुंवरपाल ने लोहे का यह दुर्ग बनावा था। 88 एकड़ में बना यह दुर्ग काफी ऊंचा था। इसलिए इसका ऐतिहासिक महत्व भी बढ़ जाता है। पूर्व में इतिहासकार स्व. लीलधर दु:खी का यहां पुरातात्विक अंश मिल चुके हैं। ऐसे में पुरातत्व विभाग का भी मानना है कि थेहड़ की गहन खुदाई होने से यहां काफी कुछ मिल सकता है और यह एक धरोहर साबित हो सकती है।
थेहड़ की ईंटों से बस गया था पूरा सिरसा
ऐतिहासिक सिरसा नगर के तहस-नहस होने के बाद आधुनिक सिरसा नगर को जयपुर शहर के नक्शे पर बसाया गया। नगर में बहुत समय पहले लोहे का एक विशाल दुर्ग था, जिसे आज थेहड़ के रूप में जाना जाता है। यह दुर्ग करीब 4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला था और इसकी भूतल से ऊंचाई 130 फीट थी। समय के साथ कालांतर में यह दुर्ग रेत के बड़े टीलों में बदल गया। 1838 में आधुनिक सिरसा नगर की नींव रखी गई तो शहर में अधिकांश हवेलियों का निर्माण थेहड़ की ईंटों से ही किया गया। मेजर जनरल थोरस्वी ने नगर के लोगों को थेहड़ की ईंटों को उखाडऩे की अनुमति दी। लाखों ईंटें उखाड़ी गई और नगर में अनेक बड़ी-बड़ी हवेलियों का निर्माण किया गया। जाहिर है कि थेहड़ की बदौलत ही वर्तमान सिरसा नगर की बुनियाद पड़ी।
सैलजा ने लगाई सवालों की झड़ी
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने सिरसा के थेहड़ को लेकर पूछे गए सवाल पर केंद्रीय पर्यटन और कला संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के जवाब पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि जब सरकार के पास कोई प्लानिंग नहीं थी और कोई बजट नहीं था तो वहां से 713 परिवारों को क्यों उजाड़ा गया। प्रदेश सरकार ने इन परिवारों को वहां से हटाते हुए हुडा सेक्टर-19 के आवासों में अस्थायी रूप से बसाते हुए आश्वासन दिया था कि उन्हें रहने के लिए भूमि उपलब्ध करवाई जाएगी पर पिछले नौ साल से इन परिवारों को कुछ भी नहीं मिला बल्कि नौ साल से बुनियादी सुविधाओं के अभाव में नरक जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कुमारी सैलजा ने मांग की है कि जिस जगह को खाली कराया है उसे विकसित किया जाए और वहां से हटाए गए परिवारों से किए गए वायदे को पूरा किया जाए। सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने सिरसा के थेहड़ को लेकर केंद्रीय पर्यटन और कला संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से कुछ जानकारी मांगी थी, जिसका जवाब केंद्रीय मंत्री ने लोकसभा में कार्यवाही के दौरान 23 मार्च को दिया। पर्यटन और कला संस्कृति मंत्री ने जवाब में कहा कि सिरसा थेहड को पुरातत्व विभाग ने 1932 में सूचीबद्ध किया था जो 85.5 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। पुरातत्व विभाग ने इस भूमि को खाली कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। बाद में राज्य सरकार ने वर्ष 2016 में 713 परिवारों को वहां से हटाकर 32 एकड़ भूमि को खाली करा लिया और वहां पर जो कुछ निर्माण था उसे ध्वस्त कर दिया गया। वहां पर बसे परिवारों को आश्वासन दिया गया था कि उन्हें रहने के लिए भूमि दी जाएगी, हुडा सेक्टर 19 के आवासों में अस्थायी रूप से रह रहे परिवारों को आज तक कुछ भी नहीं मिला है और नरक जैैसी स्थिति भोग रहे हैं।

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