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Haryana news: जानिए खेती से तौबा क्यों कर रही है युवा पीढ़ी

किसान आंदोलन के बीच खेती के गणित को समझना जरूरी

Haryana news:  हरियाणा की अर्थव्यवस्था खेती पर टिकी है। राज्य में करीब 16 लाख 17 हजार किसान परिवार हैं। एक बार फिर से किसान एम.एस.पी. देने, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। राज्य में किसान आंदोलन के चलते प्रशासन व किसान आमने-सामने हैं। किसान दिल्ली जाने पर अड़े हुए हैं। किसान नेता जगजीत डल्लेवाल खन्नौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे हैं। ऐसे में खेती के गणित को समझना जरूरी है। हरियाणा में खेती व किसानी आज किस मोड़ पर खड़ी है? यह जानना भी बेहद जरूरी है।

दरअसल हरियाणा में कई कारकों के चलते खेती से अब युवा मुंह मोड़ रहे हैं। खेती में लागत बढ़ गई है। इसके साथ ही जमीन की जोत लगातार कम हो रही है। वैसे भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में इस समय 22 लाख 53 हजार किसानों के किसान क्रेडिट कार्ड बने हुए हैं, जिस पर करीब 48049 करोड़ रुपए का कर्ज है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में सहकारी बैंकों के अंतर्गत 11 लाख 69 हजार किसानों के किसान क्रेडिट कार्ड पर 12059 करोड़ रुपए का कर्ज बकाया दर्शाया गया है। इसी तरह से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अंतर्गत 2 लाख 87 हजार किसानों पर करीब 8270.90 करोड़ रुपए का ऋण बकाया है। इसी तरह से कमर्शियल बैंकों में 7 लाख 96 हजार किसानों पर करीब 27719 करोड़ रुपए का कर्जा है। आर.बी.आई. की रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में हरियाणा में 22 लाख 64 हजार किसानों पर 45355 करोड़ रुपए का कर्ज था। खास बात यह है कि यह वो कर्ज है जिसका रिकॉर्ड सहकारी, ग्रामीण और कमर्शियल बैंकों में दर्ज है। साहुकारों और आढ़तियों से लिए हुए कर्ज की तस्वीर ही साफ नहीं है। यह तो है कि किसानों की माली हालत। कृषि एवं कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा की ओर से पिछले साल 12 दिसंबर को लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार हरियाणा के 22,86 हजार 953 किसानों पर 50,045 करोड़ जबकि पंजाब के 21,98,101 किसानों पर 55,428 करोड़ का कर्ज है।

*यह है हरियाणा में खेती का स्वरूप*

हरियाणा में खेती के गणित को समझने के लिए थोड़ा गहरी पैठ में जाना पड़ेगा। हरियाणा में करीब 36 लाख हैक्टेयर कृषि योज्य भूमि है। रबी सीजन में यहां करीब 25 लाख हैक्टेयर में गेहूं, सवा 6 लाख हैक्टेयर में सरसों के अलावा कुछ रकबे पर जौं व चने की खेती की जाती है। खरीफ सीजन में करीब 12 लाख हैक्टेयर में धान, साढ़े 6 लाख हैक्टेयर में कॉटन, साढ़े 5 लाख हैक्टेयर में बाजरा एवं 70 हजार हैक्टेयर में ज्वार की खेती की जाती है। इसके अलावा करीब 60 हजार हैक्टेयर में बाग हैं। 4 लाख हैक्टेयर में सब्जियों की, 995 हैक्टेयर में फूलों की खेती की जाती है। करीब 18 लाख हैक्टेयर भूमि नलकूपों से जबकि 12 लाख हैक्टेयर भूमि नहरी पानी से ङ्क्षसचित होती है। हरियाणा में करीब 2 लाख 79 हजार टै्रक्टर हैं। हरित क्रांति के दौर में कीटनाशकों व खादों के प्रयोग व मशीनीकरण के बाद गेहूं, धान का उत्पादन बढ़ा। इससे किसानों की माली हालत भी सुधरी। यहां के किसान का लाइफ स्टाइल भी बदला। पर इस उजले पक्ष के अलावा तस्वीर का धूंधला पक्ष भी है। अब जमीन की जोत कम हो रही है। फरीदाबाद, गुरुग्राम में तो जमीन ही नहीं रही है। किसान जमीनविहीन हो गए हैं। अब यहां के नौजवान पबों-डिस्को में बाऊंसर की नौकरी करने को विवश हैं। इसके अलावा फसल का उचित मूल्य न मिलने से अब नई पीढ़ी तो खेती से तौबा करने लगी है।

*जमीन की जोत हो रही कम*

हरियाणा कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में कुल 16 लाख 17 हजार किसान परिवार हैं। इनमें मंझोले किसानों की संख्या 7 लाख 78 हजार हैं। मंझोले किसानों के पास एक एकड़ तक जमीन है। इसी तरह से 1 से 2 हैक्टेयर भूमि वाले 3 लाख 15 हजार जबकि 2 हैक्टेयर से अधिक 5 लाख 24 हजार किसान हैं। जाहिर है कि हरियाणा में अब जमीन की जोत भी निरंतर कम हो रही है। रोचक पहलू यह है कि हरियाणा देश का प्रमुख गेहूं, धान, कपास व सरसों उत्पादित राज्य है। साल 2018-19 के रबी सीजन में 25 लाख 23 हजार हैक्टेयर रकबे में करीब 1 करोड़ 17 लाख 80 हजार टन गेहूं का उत्पादन जबकि 6 लाख 12 हजार हैक्टेयर पर 11 लाख 27 हजार टन सरसों का उत्पादन हुआ। इसी तरह से खरीफ सीजन में छह लाख 48 हजार हैक्टेयर में 26 लाख 38 हजार गांठ नरमे का उत्पादन एवं 12 लाख हैक्टेयर रकबे में 42 लाख 4000 टन धान का उत्पादन हुआ। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी किसानों को राहत नहीं दे सकी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत 13 लाख 54 हजार किसानों का बीमा कर करीब 19 लाख 32 हजार जमीन को कवर किया गया।

*बीमार हो रही जमीन*

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि उपजाऊ जमीन की सेहत बिगड़ रही है। भूमि बीमार है और उसे उपचार देने की दरकार है। राज्य की करीब 33 फीसदी भूमि में ङ्क्षजक जैसा पोषक तत्व न के बराबर रह गया है। 12 लाख 47 हजार हैक्टेयर भूमि में जिंक, दस लाख हैक्टेयर में ऑयरन एवं सवा 5 लाख हैक्टेयर भूमि में मैगनिज तत्व की कमी हो गई है। राज्य की करीब साढ़े 12 लाख हैक्टेयर भूमि ऐसी है, जिसमेंं जिंक जैसे पोषक तत्व की नितांत कमी हो गई है। जिंक की कमी होने से भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण हो गई है। सवा दस लाख हैक्टेयर भूमि में ऑयरन एवं सवा 5 लाख हैक्टेयर भूमि में मैंगनीज की कमी है। खास बात है कि सिरसा, फतेहाबाद, हिसार व जींद जिलों में जरूरत से अधिक खादों का प्रयोग किसान करते हैं। राज्य में 2001-02 में प्रति हैक्टेयर औसतन 151 किलोग्राम रासायनिक उर्वरकों की खपत हुई। 2006-07 में यह आंकड़ा 177 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रहा तो साल 2022-23 में यह 180 किलोग्राम तक पहुंच गया। हरियाणा में खादों एवं कीटनाशकों के बेजा इस्तेमाल से भूमि बीमार हो रही है, वहीं इंसानी नसों में भी धीमा जहर घुल रहा है। हरियाणा में 220 किलोग्राम उर्वरकों का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा हर साल करीब 4100 मीट्रिक टन कीटनाशकों का छिडकाव अन्न, कॉटन, सब्जियों, दालों व पशुओं के चारे पर हो रहा है। तय मानकों से भी करीब 35 फीसदी अधिक कीटनाशकों व खादों के इस्तेमाल से गेहूं, चावल, सब्जियों व दलहनों में कीटनाशकों के अवशेष ऑब्जर्व हो रहे है, जो सीधे इंसानों को कई बीमारियों की जकड़ में ले रहे हैं। खासकर इससे कैंसर जैसा रोग भी पनप रहा है। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार ही हर साल हरियाणा में 2.77 लाख मीट्रिक टन उर्वरकों की खपत हो रही है। साल 1966 में हरियाणा में कीटनाशकों की सालाना खपत 1550 मीट्रिक टन थी। अब यह बढक़र 6 हजार मीट्रिक टन को पार कर गई है। जरूरत से अधिक कीटनाशक व खाद के इस्तेमाल ने यहां की उपजाऊ धरती को बीमार कर दिया। पिछले साल हरियाणा विधानसभा में पिछले साल उठे मसले में सामने आया कि हरियाणा में 5 बरस के अंतराल में कैंसर से मरने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। साल 2013 में कैंसर के कुल 11 हजार 117 मामले सामने आए, जिनमें 1845 की मौत हो गई जबकि साल 2016 में कैंसर से 3668 मौतें हुई और करीब 16 हजार 180 केस सामने आए।

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